Editor's PickExclusiveक्रिकेट संसारफ्लैशबैक

अगर फ्रांस में क्रिकेट जन्मा होता तो हम फ्रांस की क्रांति से वाकिफ न होते!

भारत में क्रिकेट की परंपरा राजा-महाराजाओं ने डाली, इसके उलट क्रिकेट के जन्मदाता देश इंग्लैंड में यह पहले मजदूरों का खेल था फिर ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज वालों का खेल बना

ब्रिटिश इतिहासकार जीएम ट्रेविलयन कहा करते थे कि अगर फ्रेंच शासक अपनी प्रजा के साथ क्रिकेट खेलते होते तो 1789 में न उनके महल जलाए जाते और न ही फ्रांस क्रांति का स्वरूप इतना हिंसक होता।

ट्रेविलयन इसे सिर्फ इतिहास के एक मजाक के तौर पर नहीं कह रहे थे , बल्कि इसके पीछ ब्रिटेन में क्रिकेट के विकास की कहानी भी यही कहती है।

क्रिकेट का खेल इंग्लैंड में परवान चढ़ा, ये हम और आप जानते ही हैं। 19वीं शताब्दी तक क्रिकेट इंग्लैंड के शहरों और कस्बों का एक स्थापित खेल बन चुका था ।

भारत मे जब क्रिकेट आया था तो यह शुरुआत में बंबई जैसे बड़े शहरों के अमीरजादों का खेल बना

खेल बना। और बहुत दिनों तक भारत जैसे देशों में क्रिकेट की दुनिया उच्च वर्ग की दुनिया रही। और इसे कस्बों गांवों तक पहुंचने में वक्त लगा। आज हम भारत की जिस क्रिकटीय महाशक्ति को जानते हैं , वह तभी बनी जब नफासत और बड़े लोगों का खेल आम लोगों तक पहुंचा।

लेकिन,क्रिकेट जहां जन्मा उस इंग्लैंड में इसकी कहानी जरा अलग है। जिस क्रिकेट को हम जेंटलमैंन और ब्रिटिश शासकों और शहरी लोगों के खेल के तौर पर जानते हैं, उसकी शुरुआत इंग्लैंड के देहातों से हुई थी।

पहली बार क्रिकेट कब खेला गया इसको लेकर तमाम बातें हैं। लेकिन इतना तय है कि  17 वीं शताबदी में इंग्लैंड के किसान, मजदूर अपने तरीके से डंडे और गेंद से एक खेल शुरु कर चुके थे। धीरे-धीरे यह खेल इतना लोकप्रिय हो गया कि बहुत सारे  लोग चर्च की संडे  सर्विस छोड़ क्रिकेट खेलने निकल जाया करते थे। इस बात के विवरण मिलते हैं कि बहुत जगहों पर संडे सर्विस जैसे धार्मिक काम छोड क्रिकेट खेलने पर जुर्माना भी लगाया गया।

तो 17 वीं शताब्दी में भी बहुत ऐसे थे जिनके लिए क्रिकेट धर्म से ऊपर था।

इंग्लैंड के देहातों में किसान टीम बनाकर खेला करते थे और फिर इसकी रोचकता को देख जमींदार के परिवार के लोग और उनके कारिंदे भी खेलने लगे। यानी एक सामंती समाज में जहां भेदभाव चरम पर था , वहां पर जमीदार और मजदूर एक ही खेल खेलने लगे। हालांकि भदेभाव भरपूर थे । किसान , मजदूर अलग बैठते थे और लैंड लार्ड साहब अलग। जमींदार लोग बल्लेबाजी करना ज्यादा पसंद करते थे और फील्डिंग और बॉलिंग जैसे कठिन काम करने में जी चुराते थे। और फील्डिंग उनकी जगह कोई और कर लिया करता था और जमींदार साहब छाया में बैठे रहते थे।

तो इससे हुआ यह कि एक सामंती समाज के भेदभाव , अमीरों के एशोआराम और गरीबों की परेशानियां अपनी जगह थीं, लेकिन क्रिकेट ऐसा जरियां बन गया जिस पर जमीदार और मजदूर एक साथ खुश होते थे और उदास होते थे। और अगर किसी जमीदार की टीम को कोई बहुत अच्छा खेलने वाला मजूदर या किसान जिता देता था तो उसे बड़े लोगों की सरहाना और स्वीकार्यता दोनों मिलती थी। और गरीबों के अपनी दरिद्रता से जन्मे दुख जरा कम हो जाते थे।

तो ऐसे ही विलेज क्रिकेट लोकप्रिय हुआ और इंग्लैंड में काउंटी टीमों की स्थापना हुई। काउंटी क्रिकेट नाम से जाहिर है कि यह खेल देहात के मेहनतकश लोगों का खेल था।

लेकिन, गांव के बड़े फार्म हाउसेज के बगल मैदानों को इस खेल को जमीदारों के बच्चे भी खेल रहे थे तो वह इस खेल को शहरों तक ले आए। खेल बड़े तालुकेदारों के स्कूलों तक पहुंचने लगा और 19 वीं शताब्दी आते आते गांवों से शुरु हुआ यह खेल शहरों और कस्बों में स्थापित हो  गया।

अब इस खेल में दो तरह के लोग खेलने लगे। एक प्रोफेशनल यानी पेशेवर और दूसरे जेंटलमैन। पेशेवर खेलने वाले लोग निम्न ,गरीब वर्ग के लोग होते थे जो अच्छे खिलाडी होते थे और पैसा लेकर टीम में शिरकत करते थे। जबकि जेंटलमैन पबल्कि स्कूलों के बच्चे या ऑक्सब्रिज के लोग मनोरंजन के लिए खेलते थे। अच्छे खिलाड़ी पेशेवर निम्न वर्ग के लोग होते थे , लेकिन टीम के कप्तान जेंटलमैन यानी के बड़े अमीर लोग ही होते थे। दोनों तरह के खिलाड़ियों के पैवेलियन और ड्रेसिंग रूप अलग –अलग होते थे। यानी क्लास कॉनफिल्कट का पूरा माहौल था।

लेकिन फिर भी क्रिकेट इंग्लैंड के उच्च और निम्न लर्ग के बीच एक पुल का काम कर रहा था। जबकि , इसके उलट क्रिकेट की तरह ही लोकप्रिय हो रहा फुटबाल सिर्फ श्रमिक लोगों का खेल था औऱ इसे देखने वाले भी निम्नवर्ग के लोग थे। इसके उलट टेनिस मेहनत वाला खेल था, लेकिन यह भी संभ्रांत वर्ग में ज्यादा खेला ज्यादा था।

यानी फुटबाल गरीबों का खेल था। और रग्बी और टेनिस अभिजात्य, विशिश्ट लोगों का खेल।ऐसे में क्रिकेट ही ऐसा खेल था जिसने इंग्लैंड के सामंती समाज में एक संयोजन बनाया और उनमें वैसा तनाव नहीं बनने दिया , जैसा फ्रांस में हुआ और वहां गुस्साए लोगों ने वहां के बड़े लोगों को उखाड़ फेंका।

तो अब समझ में आया होगा कि ट्रेविलयन ने यह क्यों कहा था कि अगर फ्रेंच क्रिकेट खेलते तो फ्रांस की क्रांति नहीं होती।

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