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रोहित शर्मा की कप्तानी छिनना : नए युग की शुरुआत या कड़े फैसलों की सनक   

 क्या रोहित शर्मा को वनडे कप्तानी छोड़ने के लिए कम से एक वनडे सीरिज तो मिलनी ही चाहिए थी

दिख भले न रहा हो, लेकिन क्या भारतीय क्रिकेट अपने उथलपुथल के दौर में है? रोहित शर्मा टी20 और टेस्ट छोड़ चुके थे। वन डे टीम में लिए गए, लेकिन कप्तानी से हटा दिए गए। रोहित और विराट दोनों ने जरा औचक तरीके से टेस्ट को अलविदा कहा था। बिना किसी सेलीब्रेशन या विदाई के। ये सहज प्रतिक्रिया भर है या पर्सनल इगो और थोड़ी बहुत राजनीति भी। जो अभी तो नहीं,लेकिन आगे शायद असर करे।

आप कहेंगे कि अभी एशिया कप जीत कर लौटे, वेस्टइंडीज को इतनी आसानी से हराया, हम तो एक सशक्त टीम हैं। लेकिन क्या बात इतनी सी है। वेस्टइंडीज की टीम अपने गौरवशाली इतिहास को कंधे पर ढो रही है और मौजूदा समय में वो भारत के स्कली बच्चों की टीम जैसी लगती है। एशिया कप भी खेल के रोमांच के बजाए राजस्व की तिकड़म ही थी। अपने बुरे दौर से गुजर रही पाकिस्तान और श्रीलंका के अलावा एशिया कप में ऐसा क्या था, क्या हुआ जो अप्रत्याशित था।

बदलते दौर में जो थोड़ा बहुत क्रिकेट का रोमांच देखने को मिलता है , वह तब जब भारत विदेशी पिचों पर खेल रहा हो या आस्ट्रेलिया जैसी टीम के सामने हो। पूरी दुनिया के क्रिकेट में लीग्स की होड़ ने वनडे और टेस्ट फार्मेट के क्रिकेट को कमजोर किया है और ऐसे में भारत के मजबूत क्रिकेट तंत्र से निकले लड़के लगातार जीत रहे हैं। क्या इसी का फायदा उठाकर बीसीसीआई मैनेजमेंट भविष्य के फैसले के नाम पर सीनियर खिलाड़ियों को ठिकाने लगा रहा है। रोहित शर्मा ये इशारा दे चुके थे कि वे अगले विश्व कप के लिए उपलब्ध हैं। तो फिर उनसे कप्तानी छीनने की ऐसी भी क्या जल्दी थी। क्या रोहित बीसीसीआई के प्लान में बतौर कप्तान या खिलाड़ी नहीं थे। ऐसा भी था तो कम से कम रोहित को एक वनडे सीरीज देकर उनसे सम्मान सहित कप्तानी छुड़वाई जा सकती थी। रोहित कितने बड़े खिलाड़ी हैं , यह बताने की जरूरत नहीं है और व्हाइट बाल क्रिकेट के सफल कप्तान भी हैं। फिर ऐसे निर्णय क्या सिर्फ इसलिए कि हम बहुत सख्त फैसले लेते हैं।

अगर शुभमन युग की शुरुआत और चयन समिति के  बीते कुछ फैसले देखें तो मुख्य चयनकर्ता अजित अगरकर बहुत ताकतवर नजर आने लगे हैं। गौतम गंभीर तो थे ही। जाहिर है कि अगरकर की यह ताकत उनकी स्वयं अर्जित नहीं है, उनके पीछे बीसीसीआई मैनेजमेंट के लोगों का बैकअप है।

आस्ट्रेलिया में टीम का प्रदर्शन कम से कम इस बात से तो प्रभावित नहीं ही होता कि रोहित कप्तान हैं। रही बात शुभमन को बतौर कप्तान विश्व कप के लिए तैयार करने की तो उनके पास काफी वक्त है। युवा जोश महत्वपूर्ण होता है, लेकिन अनुभव का भी कोई विकल्प नहीं होता है। अभी भारतीय क्रिकेट सुनहरे दौर में है, इसकी एक वजह यह भी है कि वेस्टइंडीज, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसी टीम अब पहले जैसी नहीं रही हैं और कई बारगी लगता है कि हम इनसे खेल क्या रिकार्ड भर सुधार रहे हैं।

क्लाइव लायड, गैरी सोबर्स, विवियन रिचर्डस जैसी महान वेस्टइंडीज टीम का हाल हम देख ही रहे हैं। उसके पतन के तमाम कारणों में से एक यह भी रहा कि उसके बड़े खिलाड़ी समय –समय पर रिटायर होते रहे  और युवा खिलाड़ी नई लीग्स के चक्कर में फंसते गए और पूरा कैरबियाई क्रिकेट ढांचा चरमरा गया। कुछ जगमगाहट के बीच ऐसी कोई किरण नहीं दिखती कि कैरबियाई क्रिकेट इससे उबर पाए।

भारत में भी क्रिकेट के नए सितारे आईपीएल की देन हैं और लीग क्रिकेट का दौर भी है। तो जाहिर है कि टी20 और फटाफट क्रिकेट के खिलाड़ियों की पूरी फौज है।

क्रिकेट की लोकप्रियता भी बढ़ती दिखती है, लेकिन असली क्रिकेट के चाहने वाले अपने खिलाड़ियों से बेहतर बर्ताव की उम्मीद रखते हैं। रोहित शर्मा और विराट इससे बेहतर बर्ताव के हकदार थे। उन खिलाड़ियों में जिन्होंने सचिन, राहुल द्रविड़ और गांगुली की छोड़ी टीम के बेहतर दौर को और ऊपर उठाया और धोनी जैसे सफल कप्तान की भूमिका में भी उनका योगदान  सराहनीय है। अभी फिटनेस और इधर उधर की बातें की जा रही हैं, लेकिन अगर इन खिलाड़ियों से ऐसे बर्ताव के पीछे पर्सनल ईगो और राजनीति है तो दुखद है।

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