चेतेश्वर पुजारा: एक मील का पत्थर, जिसे किसी ने मुड़कर नहीं देखा
टीम बैट-बल्ला
चेतेश्वर पुजारा की बल्लेबाजी से लेकर व्यक्तिव तक में एक चीज नत्थी थी- ज्यादा चर्चा में न रहना। चर्चाओं को पुजारा वैसे ही दबा देते थे , जैस 145-150 किलोमीटर की रफ्तार से आती तेज गेंदों को बैट और पैड साथ लाकर जमीन में धंसा देते थे। पुजारा एक ऐसे समय में भारतीय क्रिकेट बल्कि यूं कहिए कि टेस्ट टीम में आए, जब फटाफट क्रिकेट अपनी पूरी चमक के साथ उभर रहा था। और सीधे बल्ले से बैट-पैड साथ ला खेलने वाली क्लासिकी के बजाय फुटवर्क, टाइमिंग और थोड़े दुस्साहस के साथ गेंद को बाउंड्री से बाहर भेज देने वाली बल्लेबाजी लोकप्रिय हो रहा था। नियम बल्लेबाजों के अनुकूल हो रहे थे, टी20 और आईपीएल की लोकप्रियता बढ़ रही थी। क्रिकेट में मनोरंजन का तत्व इस कदर बढ़ रहा था कि हर दूसरी तीसरी गेंद पर चौक-छक्का न लगने पर दर्शक मायूस हो जाने लगे थे।
क्रिकेट के उस संक्रमण के दौर में पुजारा अपनी कॉपी-बुक स्टाइल वाली बल्लेबाजी के साथ टेस्ट क्रिकेट में आए। दर्शकों से लेकर खिलाड़ियों तक के उतावलेपन के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी धैर्य की प्रतिनिधि थी। ये हिम्मत की बात थी कि कुछ टेस्ट खेलने के बाद ही पुजारा पर यह अतिरिक्त दवाब भी बन गया कि उनको राहुल द्रविड़ का उत्तराधिकारी माना जाने लगा।
राहुल द्रविड़ का भारतीय क्रिकेट में योगदान ही कुछ ऐसा था कि उनके साथ महान का टैग चस्पा था। लेकिन, पुजारा ने राहुल द्रविड़ का उत्तराधिकार तो संभाला, लेकिन महान वाले दबाव को अलग रख दिया। और अपने पर भरोसा रख खेलते रहे।
अखबारों में, किक्रेट एनॉलिसिस में, फैंस के शोर-शराबे और क्रिकेट के ग्लैमर की सनशाइन में बाकी नामों के साथ पुजारा कम चमके, लेकिन उनका बल्ला मैदान पर एक स्थायी लय में अपनी धुन के साथ चलता रहा। उनके धैर्य का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि 2016-17 के रांची टेस्ट में उन्होंने 202 रनों की पारी में 521 गेंदें खेलीं। 521 गेंदे मतलब लगभग 87 ओवर। बिना किसी ज्यादा चहल-पहल के पुजारा ने भारत के लिए 100 से ज्यादा टेस्ट खेले और करीब 43 के औसत से 7000 से ज्यादा रन बनाए।
महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली की टेस्ट कप्तानी की सफलता की कहानी में भी चेतेश्वर पुजारा एक मुख्य किरदार रहे। विराट, धोनी, रोहित जैसे तमाम बड़े नामों के बीच पुजारा की बल्लेबाजी की सहकथा में जिस खिलाड़ी का नाम याद आता है, वह हैं आजिक्य रहाणे। अपने बैकफुट पंच और क्लासिक स्ट्रोक के साथ पुजारा और आजिक्य बदलते टेस्ट क्रिकेट में अपनी भूमिका निभाते रहे। पुजारा की टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी न पूरी तरह कविता थी और न बहुत रूखा गद्य। उनकी बल्लेबाजी गद्य-काव्य थी, जिसमें निरंतरता और लय दोनों थी।
पुजारा भारतीय बल्लेबाजी के इतिहास के रास्ते पर मील के पत्थर की तरह हैं, जिनकी तरफ मुड़कर भले कोई न देखे, लेकिन वे भारतीय क्रिकेट को रास्ता दिखाने का काम करता रहेगा।