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डिकी बर्ड : क्रिकेट के जेंटलमैन चेहरे का सच्चा प्रतिनिधि, जिसने खेल को बड़ा बनाया

हारोल्ड डेनिस बर्ड । 1933 में बार्न्सले (यॉर्कशायर) में यह बच्चा एक कोल माइनर के घर जन्मा। बड़ा हुआ तो स्कूल जाने लगा और स्कूल के बच्चे उसे डिकी कहने लगे। बड़े हुए तो घर वाले चाहते थे कि डिकी भी कोल माइन में नौकरी कर लें। लेकिन, डिकी का मन क्रिकेट में लगता था। क्लब क्रिकेट से होकर वह,यार्कशायर के लिए भी खेले। बाद में चोट के कारण उन्हें क्रिकेट खेलना छोड़ना पड़ा। लेकिन, नियति ने उनकी जिंदगी में क्रिकेट ही लिख रखा था। वे अंपायर बने और शायद क्रिकेट इतिहास के सबसे अधिक लोकप्रिय, मानवीय और नियमों के पाबंद अंपायर बने। 66 टेस्ट मैचों में अंपायरिंग करने वाला ये शख्स खिलाड़ियों के दोस्त, परिवार जैसा था और उनके फैसले को क्रिकेट के बड़े –बड़े दिग्गज भी सर झुका कर मानते थे। क्रिकेट को जेंटलमेन गेम कहा जाता है और डिकी बर्ड इसके सच्चे प्रतिनिधि थे। 23 सितंबर 2024 को 92 साल की उम्र में निधन हो गया।

क्रिकेट के मैदान पर वक्त के किसी पल में 13 ही खिलाड़ी मैदान पर होते हैं। लेकिन 23 सालों के अपने अंपायरिंग करियर में डिकी की मौजूदगी एक जीवंतता और ह्यूमर का एहसास हमेशा कराती रही। और वे खिलाड़ियों के अलावा क्रिकेट के ऐसे गैर खिलाड़ी रहे जिसने क्रिकेट जैसे खेल को बड़ा और महान बनाया।

डिकी के कुछ दिलचस्प किस्से

खिलाड़ियों के पास हमेशा ऐसे किस्से रहे जो डिकी की मानवीयता और उनके सहज विनोद के बारे में बताते रहे। सुनील गावस्कर एक मैच के दौरान अंपायर के पास पहुंचे और बोले क्या आपके पास कैंची है। डिकी ने मुस्कराकर पूछा- क्या करना है, पैड का कोई धागा खुल गया है क्या। गावस्कर ने कहा- नहीं, शॉट खेलते वक्त मेरे बाल बार-बार आंखों के आगे आ जा रहे हैं। डिकी मुस्कराए कैंची निकाली और गावस्कर के बाल काट दिए। मैदान में डिकी की भाव भंगिमा हमेशा बहुत सहज रही और खेल के दबाव में दबे खिलाड़ियों को हंसने मुस्कराने का मौका देती रही।

डिकी बर्ड ऐसे अंपायर रहे, जिन्होंने शुरुआती तीनों विश्व कप (1975,79,83) में अंपायरिंग की। 83 के विश्व कप में जैसे ही माइकल होल्डिंग के पांवों में गेंद लगी और उन्हें एलबीडब्ल्यू करार देने के लिए डिकी बर्ड की उंगली उठी और मोहिंदर अमरनाथ विकेट लेकर भागने लगे। वह भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण था और उसने भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता की नई राह खोली।

गांगुली और द्रविड़ की डेब्यू

दादा यानी सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ ने जिस टेस्ट मैच में अपना डेब्यू किया था। डिकी बर्ड उस मैच में अंपायरिंग कर रहे थे। शुरुआत में सौरव गांगुली के बैट और कंधे के पास से गेंद निकली और इंग्लिश खिलाड़ियों ने जोरदार अपील की। लेकिन, डिकी ने कुछ देर सोचा और गांगुली को नॉट आउट करार दिया। गेंद कंधे को छूकर निकली थी और बैट-बॉल में गैप था। सौरव ने उस मैच में बेहतरीन शतकीय पारी खेली और द्रविड़ ने भी 95 रन बनाए।

मैदान पर सहजता और विनोद के साथ डिकी क्रिकेट के नियमों और खेल भावना के प्रति इस कदर समर्पित थे कि उनसे जुड़ा एक वाकया है कि एक मैच में गेंदबाज ने खेल की गति धीमी करने के लिए जानबूझकर नो बॉल फेंकी। डिकी इस बात से इतना नाराज हुए कि उन्होंने अगली ठीक तरीके से फेंकी गई पांच गेंदों को नो बॉल करार दिया। डिकी जिस दौर में अंपायरिंग करते थे, वह तेज बॉलर्स का दौर था। लेकिन, उनकी खेल से इतर आक्रामकता को डिकी बर्ड की अंपायरिंग काबू रखती थी।

डिकी की सक्रियता क्रिकेट फील्ड के बाहर भी थी। उन्होंने अपने नाम से फाउंडेशन बनाया और तमाम सामाजिक धार्मिक कामों में सक्रिय रहे। डिकी बर्ड की आत्मकथा क्रिकेट के दिलचस्प विवरणों का खजाना है। डिकी जेंटलमैन गेम के सच्चे प्रतिनिधि थे। अब वे हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, खेल के मैदान पर उनका मुस्कराहट, खिलाड़ियों से बतियाते, प्रशंसकों को आटोग्राफ देती भंगिमाएं सदैव क्रिकेट प्रेमियों की स्मृति में रहेंगी।

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